आज के इस लेख में आप जानेंगें घेंघा रोग क्या होता है, घेंघा रोग क्यों होता है, घेंघा रोग के लक्षण और घेंघा रोग का होम्योपैथिक इलाज के बारे में पूरी जानकारी विस्तार से,तो चलिए जानते हैं कि
घेंघा रोग क्या होता है
घेंघा रोग जिसे आम बोल-चाल की भाषा में गलगण्ड, गण्डमाला रोग भी कहा जाता है।इंग्लिश में गोइटर (Goiter) कहते हैं।घेंघा एक गले में होने वाला रोग है जो थायरॉयड ग्रंथि के बढ़ने से होती है, यह ग्रन्थी गर्दन में एडम्स एप्पल के ठीक नीचे स्थित होती है।
थायरॉयड ग्रंथि थाइराइड हार्मोन का उत्पादन करती है जो चयापचय सहित शरीर में विभिन्न कार्यों को नियंत्रित करती है।
यदि थाइराइड ग्रन्थि का आकार अधिक बढ़ जाये तो व्यक्ति को खाँसी, निगलने में परेशानी,गला बैठना,आवाज भारी हो जाना,तेजी से वजन बढ़ना और यहाँ तक कि व्यक्ति को सांस लेने में भी परेशानी हो सकती है।
घेंघा रोग के प्रकार (Types of Goiter in Hindi)
घेंघा रोग मुख्यतः चार प्रकार का होता है।
1• साधारण घेंघा (Simple goiter)
यह एक प्रकार का साधारण घेंघा होता है जिसमें किसी भी प्रकार का दर्द नहीं रहता है।जो शरीर में आयोडीन की कमी से होता है। जिसमें व्यक्ति के गले में केवल सूजन आ जाती है।यह किसी भी प्रकार का ट्यूमर या कैंसर नहीं होता है।
2• डिफ्यूज टॉक्सिक गोइटर (Diffuse toxic goiter)
इस प्रकार का घेंघा रोग ज्यादातर 50 वर्ष से ऊपर के लोगों में देखा जाता है।जिसमें व्यक्ति का थाइराइड ग्रन्थि काफी बढ़ जाता है।जिसके कारण व्यक्ति को सांस लेने व खाने-पीने की चीजों को निगलने में दिक्कत होने लगती है।
3• नॉन टॉक्सिक गोइटर (Nontoxic goiter)
इस प्रकार का घेंघा रोग आयोडीन की आपूर्ति व चयापचय की असामान्यताओं की वजह से होता है। सूजन या नियोप्लासिया के कारण यह रोग नहीं होता है।
4• टॉक्सिक नोड्यूलर गोइटर (Toxic nodular goiter)
इस प्रकार का घेंघा रोग ज्यादातर 50 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को होता है।जिसमें रोगी की थाइराइड ग्रन्थि में सूजन आने के साथ साथ वहां पर गांठे बनने लगती हैं।
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घेंघा रोग क्यों होता है
घेंघा रोग कई कारणों से हो सकता है।
आयोडीन की कमी:
दुनिया भर में गण्डमाला का सबसे आम कारण आहार में आयोडीन की कमी है। आयोडीन थायराइड हार्मोन के उत्पादन के लिए आवश्यक एक आवश्यक खनिज है। जब शरीर को पर्याप्त आयोडीन नहीं मिलता है, तो थायरॉयड ग्रंथि कमी की भरपाई करने के प्रयास में बढ़ जाती है।जिसके कारण घेंघा रोग हो जाता है।
हाशिमोटो का थायरॉयडिटिस:
यह एक ऑटोइम्यून स्थिति है जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से थायरॉयड ग्रंथि पर हमला करती है, जिससे थाइराइड ग्रन्थि क्षतिग्रस्त हो जाती है।जिससे थाइराइड हार्मोन्स बहुत कम बनने लगता है।इस स्थिति में थाइराइड ग्रन्थि अधिक मात्रा में थाइराइड हार्मोन बनाने के लिए लगातार सक्रिय रहती है जिससे कारण थाइराइड ग्रन्थि में सूजन होकर घेंघा रोग हो जाता है।
ग्रेव्स रोग:
एक अन्य ऑटोइम्यून विकार, ग्रेव्स रोग, थायराइड हार्मोन के अत्यधिक उत्पादन का कारण बनता है, जिससे हाइपरथायरायडिज्म होता है। इस स्थिति में अक्सर बढ़ी हुई थायरॉयड ग्रंथि मौजूद होती है।
थायरॉयड नोड्यूल:
ये थायरॉयड ग्रंथि में असामान्य वृद्धि या गांठ हैं। जबकि अधिकांश नोड्यूल सौम्य होते हैं, बड़े या एकाधिक नोड्यूल ग्रंथि के बढ़ने का कारण बन सकते हैं और परिणामस्वरूप गण्डमाला हो सकती है।
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घेंघा रोग के लक्षण( Symptoms of Goiter in Hindi)
किसी भी स्त्री या पुरुष में घेंघा रोग होने पर निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
- सांस लेने में दिक्कत होना।
- बार-बार खांसी आना।
- आवाज भारी होना।
- खाद्य व पेय पदार्थ निगलने में तकलीफ होना।
- गले के अगले हिस्से में दर्द होना।
- थकान और कमजोरी महसूस होना।
- गर्मी बिल्कुल सहन न होना।
- हमेशा खाना खाने की जिद्द करना।
- बहुत अधिक पसीना आना।
- महिलाओं में मासिक धर्म का अनियमित होना।
- बार-बार पखाना होना।
- मासपेशियों में ऐंठन होना।
- घबराहट व बेचैनी होना।
- तेजी से वजन बढ़ना।
- गले में जकड़न का एहसास होना व सिर को घुमाने पर चक्कर आना।
- याददाश्त का कमजोर होना
घेंघा रोग का होम्योपैथिक इलाज
1• आयोडम (Iodum )
2• ब्रोमियम( Bromium)
3• कैल्केरिया कार्बोनिका (Calcarea Carbonica)
4• लैकेसिस (Lachesis)
5• स्पोंजिया टोस्टा (Spongia Tosta)
6• कोनियम मैकुलैटम (Conium Maculatum)
7• बैराइटा कार्बोनिका (Baryta Carbonica)
8• आयोडियम (Iodium)
9• लाइकोपोडियम क्लैवाटम (Lycopodium Clavatum)
10• फेरम आयोडेटम (Ferrum Iodatum)
11• ग्रेफाइट्स (Graphites)
12• नेट्रम म्यूरिएटिकम (Natrum Muriaticum)
13• फाइटोलैक्का डेकेंड्रा ( Phytolacca Decandra)
14• स्टैफिसैग्रिया (Staphysagria)
15• साइलीशिया (Silicea)
Disclaimer: इस आर्टिकल में बताई विधि, तरीक़ों व दावों की homeoupchar.com पुष्टि नहीं करता है, इनको केवल सुझाव के रूप में लें, इस तरह के किसी भी उपचार/दवा/पर अमल करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।